गुरुदास : परम पूज्य गुरुदेव, नारी जीवन में ऋतुकाल की महत्ता बहुत मानी जाती है और शास्त्रों में इस काल में नारी के लिए बहुत से कार्य निषिद्ध किए गए हैं जबकि आधुनिक नारी व्यवहार व दैनिकचर्या में लापरवाही बरतती है। जो कि हमारे ऋषियों-मुनियों ने उनके लिये निर्दिष्ट किए हैं। तो क्या इस उल्लंघन या अवहेलना का कोई दुष्प्रभाव नारी के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है ?

परम पूज्य गुरुदेव : आपने अति महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है। नारी को अवश्यमेव शास्त्रोक्त नियमों का पूर्ण श्रद्धा से पालन करना चाहिए। महाभारत की कथा सबको मालूम है कि कैसे ऋतु स्नान के काल में द्रौपदी को जनसभा में बुलाकर अपमानित किया गया और इसका अन्त कितना महा विनाशकारी विध्वंसकारी हुआ।

ऋतु स्नान काल में अगर स्त्री तुलसी के पौधे को पानी दे दे तो पूरी जिंदगी वह तुलसी का पौधा फल-फूल नहीं सकता और अगर वह स्त्री गुलाब के पौधे को पानी दे दे तो पूरी जिंदगी उस गुलाब के पौधे पर फूल नहीं लगेगा। अगर कोई सांप किसी ऋतु स्नान वाली स्त्री को देख ले तो वह सांप अन्धा हो जाएगा। उस समय स्त्री के अन्दर जो आवेग ऊर्जा होती है वह खाद्यान्नों पर भी दुष्प्रभाव डालती है। जैसे जब पापड़ बन रहे हैं, अगर ऐसी स्थिति वाली स्त्री उसे देख लें तो वह पापड़ भूना जाने के बाद लाल रंग का हो जाएगा। अगर ऐसी स्त्री अपने हाथों से आटा गूंथ कर सोन चिड़िया को खिला दे तो खाते ही वह चिड़िया मर जाएगी। उन दिनों में (ऋतुकाल में) स्त्री के अन्दर से कोई दिव्य ऊर्जा निकल रही होती है। प्रभु कृपा से नकारात्मक शक्तियों का निष्कासन हो रहा होता है।

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