बड़े-बड़े विद्वान भी इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि कई ऐसी औषधियां हैं जो मनुष्य को अकूत संपत्ति व धन-संपदा प्रदान करती हैं। यह अविश्वसनीय बात है लेकिन सत्य है। इनका वर्णन आयुर्वेद में है। इन्हें जानने के लिए गहन अध्ययन करना पड़ता है। इसके साथ ही इनके मंत्र व निष्कीलन का होना भी बहुत जरूरी होता है। आयुर्वेद का अस्तित्व सभी वेदों के साथ रूप से रहा है। इसमें जो भी वर्णित है वह संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए है लेकिन अफसोस की बात है कि आज की पढ़ाई में वह सब नहीं पढ़ाया जाता है जो आयुर्वेद में वर्णित है। औषधियों का ज्ञान भी संपूर्ण नहीं है और मंत्र तो जैसे लुप्त ही हो गए हैं। वैद्य कई रोगों के निदान के लिए एलोपैथी की दवाइयां देते हैं। जैसे बुखार के लिए प्रायः पैरासीटामॉल दे देते हैं। बुखार या ज्वर का जैसे उन्हें इलाज मालूम ही नहीं है। आधे-अधूरे ज्ञान को लेकर आयुर्वेद के नाम पर प्रेक्टिस करने वाले चिकित्सकों को जब आयुर्वेद की औषधियों का ही ज्ञान नहीं है और न ही इनके मंत्रों का ही ज्ञान है तो ऐसी अवस्था में रोग निवारण कैसे संभव हो सकता है। आयुर्वेद की औषधियां किसी भी असाध्य रोग का निवारण करने में समर्थ हैं। इतना ही नहीं चमत्कृत रूप से रोग को जड़ से समाप्त कर देती हैं जबकि अन्य पैथियों की दवाओं से साइड इफेक्ट हो जाते हैं। एक रोग से निजात मिलती है तो दूसरा शुरू हो जाता है। इसके बाद भी रोग जड़ से समाप्त नहीं होता। ऐसे ही कई रोग हैं जिन्हें आधुनिक कही जाने वाली मेडिकल साइंस रोग ही नहीं मानती। सिर में हो रही भयंकर डैंड्रफ जो फंगल इंफेक्शन का ही प्रारूप है, के लिए केवल शैम्पू से धोने की सलाह डाक्टर देते हैं। विदेशों में जब मैंने इस विषय में कुछ वैज्ञानिकों और डाक्टरों के समक्ष डैंड्रफ पर प्रयोग करके दिखाया तो वे चौंक गए। पहले तो वे मान ही नहीं रहे थे कि कोई रोग मंत्रोक्त औषधि या जल से तत्क्षण ही ठीक हो सकता है। उन्होंने बाकायदा अपने यंत्रों द्वारा जांच की तो उन्हें विश्वास हुआ, वे हैरान हो गए। (लुधियाना समागम)
आयुर्वेद ने ही हमें औषधियों का ज्ञान प्रदान किया है। औषधियों के साथ-साथ मंत्रों का ज्ञान भी इसी के द्वारा हमारे ऋषि-मुनियों को प्राप्त हुआ। औषधियों का प्रयोग कभी हानिकारक नहीं होता। यदि औषधि से सम्बंधित मंत्र का उच्चारण करते हैं तो ये प्रकाशित होकर सकारात्मक परिणाम प्रदान करती हैं। हम जितने भी मसालों का प्रयोग करते हैं ये सब औषधि ही हैं। इनकी पहचान भी हमें आयुर्वेद ने ही करवाई है। हम इन्हें भोजन के रूप में खाने लगे। इनके अधिक प्रयोग करने के कारण हानि होने लगी और इनके साइड इफेक्ट भी होने लगे। कई ऐसे भोज्य औषधियां भी हैं जिनका अधिक प्रयोग करने से विष बन जाता है। कई ऐसी औषधियां हैं जिनका मंत्रोक्त प्रयोग आयु बढ़ाता है तो कई ऐसी भी हैं जो प्राणों की रक्षा भी करती हैं। (रायपुर समागम )